मर्द कभी बलात्कार नहीं करते हैं (दिल्ली में जीवन से जूझती उस अनजान लड़की के लिए) मर्द कभी बलात्कार नहीं करते हैं माँ की कोख शर्मशार नहीं करते हैं मर्द होते तो लड़कियों पर नहीं टूटते मर्द होते तो आबरू उनकी नहीं लूटते मर्द हमेशा दिलों को जीतता है कुचलना नामर्दों की नीचता है बेटियां बहन मर्द के साए में पलती हैं मर्द की जान माँ की दुवाओं से चलती है मर्द नहीं फेकते तेज़ाब उनके शरीर पर मर्द प्रेम में मिट जाते हैं अपनी हीर पर मर्द उनको देह की मंडियों में नहीं बेचता मर्द दहेज़ के लिए उनकी खाल नहीं खेचता मर्द बच्चियों के नाजुक बदन से नहीं खेलते मर्द बेटियों को बूढों के संग नहीं धकेलते फिर भी तू खुद को गर मर्द कहता है बेबस लड़कियों पर जुल्म को फ़र्ज़ कहता है खुदा का अपनी करनी पर झुक गया सर है हिजड़ा और जानवर फिर भी तुझसे बेहतर हैं.
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