ब्राह्मण का आना, और बसन्त का आना, एक सा होता हैं, क्योकि जब बसंत आता हैं, तो प्रकृति सुधर जाती...
ना किसी का बाबू हूँ और ना ही किसी का प्यार हूँ, बस कुछ “दोस्त” हैं मी अपने जिनका मैं...
ब्राह्मण भूखा तो सुदामा, ब्राह्मण समझा तो चाणक्य, ब्राह्मण रूठा तो परशुराम।
ब्राह्मण वो हैं जो शस्त्र और शास्त्र के, सहयोग से समाज से अज्ञानता को दूर करे।
जब तक रगो में आखिरी कतरा हैं, शरीर पर रूह का कब्जा रहेगा, हम पंडित Ji हैं, और यही Pandito...
“ब्रामण” के ठाठ देख कर तो आजकल शहर की छोरियां भी कहने लगी हैं ना दवा चाहिए ना दर्द चाहिए,...
पंडित की सन्तान हैं हम शेर सा रुतबा रखते हैं, इतिहास क्या चीज हैं हम तो भूगोल बदलने का दम...
ये आवाज नही ब्राह्मण कि दहाड़ हैं, अकेले भी खडे सामने हो जाये तो पहाड़ हैं।
जलते है तो जलने दो, बुझना मेरा काम नही, जलाकर राख न कर दु, तो ब्राह्मण मेरा नाम नहीं।
बिना तङके की दाल और बिना, Attitude का माल ब्राह्मण न पसंद कौनी।